खुलासा / 100 करोड़ की धोखाधड़ी मामला; ठग संजय द्विवेदी ने नहीं चुकाए टैक्स के 26 करोड़, फर्जी कागजों की मदद से लिया 15 करोड़ का लोन

लोन माफिया और फर्जी कागजात से 100 करोड़ की धोखाधड़ी करने वाले संजय द्विवेदी के मामले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। संजय ने न सिर्फ किसानों और आम लोगों को ठगा, बल्कि उसने वाणिज्यिक कर विभाग के टैक्स के 26 करोड़ रुपए भी नहीं चुकाए। सीए की मदद से तैयार फर्जी दस्तावेजों से कोटक महिंद्रा बैंक से 15 करोड़ रुपए लोन ले लिया और उसके बदले में सिल्वर मॉल स्थित दफ्तर को गिरवी रख दिया। निवेशकों से ठगी रकम से उसने कुछ समय पहले मांगलिया में करोड़ों रुपए कीमत की एक लाख 64 हजार वर्गफीट जमीन खरीदी।


इसकी भी जानकारी रजिस्ट्रार कार्यालय से निकाली जा रही है। ईओडब्ल्यू एसपी एसएस कनेश के मुताबिक, दस्तावेजों में लोन संबंधी धोखाधड़ी सामने आने के बाद संजय के सीए संतोष शर्मा को नोटिस जारी किया है। जांच में पता चला है कि द्विवेदी की कंपनी के खातों का ऑडिट शर्मा करते थे और फिर आय के फर्जी आंकड़े तैयार कर बैंकों से लोन लिया जाता था। इसको लेकर शर्मा से पूछताछ की जाएगी। इसी तरह कंपनी सेक्रेटरी दीपक प्रजापत को भी नोटिस जारी किया है। संजय की सभी कंपनियों का रजिस्ट्रेशन और ऑडिट प्रजापत करते थे। 


संजय और नेहा के 100 बैंक खातों की जानकारी मिली


डीएसपी आनंद यादव ने बताया कि संजय और नेहा के अब तक 100 बैंक खाते होने के प्रमाण मिल चुके हैं। इन खातों में कितनी राशि जमा है,  यह पता करने के लिए बैंकों को पत्र लिख रहे हैं। दोनों ने कितने बैंकों में लॉकर खोले थे, इसकी भी जानकारी मांगी है। इसके अलावा आयकर विभाग को भी पत्र लिखकर इनकी संपत्ति की जांच करवाएंगे। संजय और उसकी फर्म ने कब, कितना आयकर जमा किया है, यह ब्योरा भी मांगेंगे।


250 लोगों से निवेश कराया, जानकारी 17 की दी
संजय और उसके साले पीयूष की फर्जी एडवाइजरी कंपनी डीएस कैपिटल की एक और गड़बड़ी ईओडब्ल्यू को पता चली है। इस कंपनी में दोनों ने 250 लोगों का पैसा निवेश करवाया था, लेकिन सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड (सेबी) को सिर्फ 17 लोगों के निवेश की जानकारी दी थी। बाकी लोगों का हिसाब अलग सिस्टम पर रखा जाता था। इससे निवेशक को कभी पता ही नहीं चलता कि उसका पैसा कहां गया। शेयर बाजार में पैसा लगाने के बजाय संजय इसे अपने खाते में ट्रांसफर करवा लेता था। उसकी कई कंपनियां सेबी में रजिस्टर्ड ही नहीं थी।



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